Raghuveer Sharma
25
रसखान रत्नावली (सवैया -176)
तू गरबाइ कहा झगर रसखानि
तेरे बस बाबरो होसै।
तौ हूँ न छाती सिराइ अरी करि
झार इतै उतै बाझिन कोसै।
लालहि लाल कियें अँखियाँ गहि
लालहि काल सौं क्यौ भई रोसै।
ऐ बिधना तू कहा री पढ़ी बस
राख्यौ गुपालहिं लाल भरोसै।।
Please login to like this post Click here..
Please login to leave a review click here..
Login Please Click here..
Please login to report this post click here..